भूकंप, भूस्खलन, मृदाक्षरण और बादल फटने से आने वाली बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटनाओं से उत्पन्न पर्यावरण संबंधी समस्याओं के अलावा भू-गतिविज्ञान के तौर पर सक्रिय और पारिस्थितिकीय तौर पर संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में मानव-निर्मित कई अन्य समस्याएं भी है। उनमें शामिल हैं- त्वरित मृदाक्षरण, वर्षा जल का प्रवाह, भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं, जल निकायों में गाद और प्रदूषण, झरनों का सूखना, वन क्षेत्र में कमी होना, चारा और वनों की सघनता में कमी होना, चारा और ईंधन की लकड़ी का अभाव, अधिक चरने से नुकसान, जंगल में आग लगना, वन्यप्राणियों के रहने के स्थान में बदलाव होना, फसल की पैदावार कम होना, बंजर भूमिबढ़ना और बाह्य प्रजातियों किहमला, जैव-विविधता में कमी, खेती का स्थान बदलना आदि। इनमें से अधिकांश समस्याएं एक-दूसरे से जुड़ी है और एक समस्या दूसरी समस्या को बढ़ाती है । कृषियोग्य भूमिके व्यवहार्य आकार, पशुधन के लिए पर्याप्त वन, सिंचाई के लिए जल और पेयजल, कठिन चराई पर सीमांत और वर्षा-आधारित भूमि, मिट्टी की निम्न उर्वरता और फसल का कम उत्पादन, जलवायु में बदलाव जैसे आधारभूत संसाधनों की कमी होने और कृषिउत्पादों के प्रसंस्करण और विक्रय के लिए आधारभूत सुविधाओं और बाजार का अभाव होने से ग्रामीण लोगों की जीविका कायम रखना कठिन हो जाता है । इन घटकों के साथ-साथ बेहतर और स्वास्थ्य सुविधा, रोजगार के अवसरों आदिजैसी मानवीय जरूरतों और आकांक्षाओं के कारण लोग प्रवास करने के लिए बाध्य होते हैं और देश के शहरी क्षेत्रों में जीविकोयार्जन के अन्य प्रारूपों की तलाश करते हैं । प्राकृतिक संसाधनों के अवनयन के उपरोक्त कुचक्रों, गरीबी और प्रवास के कारण हिमालयीन पारिस्थितिकी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। एक समय की साझा संपत्तिसंसाधनों प्रबंधन की समृद्ध विरासत को आघात पहुंचा है और आजीविका कायम रखने के बारे में हमारा अमूल्य स्वदेशी ज्ञान डांवाडोल हो रहा है। क्षेत्रीय नगरों का विस्तार और निर्माण के लिए प्रमुख भूमिका बदलाव होना एक नई प्रमुख चिन्ता में शामिल है, जिसके कारण भूमि, जल और अन्य नागरिक सुविधाओं के लिए संधर्ष बढ़ा है। कुछ क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना और मौसम आधारित पर्यटन के कारण वायु एवं जल के साथ ही ध्वनिप्रदूषण बढ़ा है। इसलिए उच्च पारिस्थितिकीय और सामाजिक ढांचे वाले इस क्षेत्र में कार्य करना चुनौतिपूर्ण है तथा पर्यारवण संबंधी सरोकारों की वाले विभिन्न वैज्ञानिक विषयों के एक साथ जोड़ने के लिए उच्च अंतर विषय के कौशल और दृष्टिकोण की काफी जरूरत है। इसलिए देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में यहां विकास के अधिक कार्य करना समय की पुकार है। सुरक्षा करते हुए निवासियों के सामाजिक आर्थिक विकास से संबंधित समस्याओं को हल करने
एक और सवेरा
Wednesday, 28 March 2012
भारतीय रेल :कमाई और भलाई का मेल
पहले रेलवे बजट पॉलिटिकल होता था ,किन्तु ८१ वाँ रेल बजट पेश होने के बाद पॉलीटिक्स शुरू हुई है .upa 2 में तो ऐसा लग रहा है कि भारत सरकार को कांग्रेस चला रही है तो दूसरी तरफ रेलवे को तृणमूल कांग्रेस.रेल मंत्री जी ने बजट पेश करते समय बारबार ममता बनर्जी का जिक्र किया.यूँ तो बजट पेश होने के बाद विपक्षी दलों का एक ही सूर होता है कि बजट आम जनता विरोधी है .किन्तु,खुद तृणमूल के नेता यही उवाच उगल रहे हैं.
तमाम राजनीति के बावजूद ८१ वें बजट में रेल के भविष्य की खूबसूरत व अवश्यम्भावी रूपरेखा प्रस्तुत की गई है.बजट में रेलवे के आधुनिकीकरण और सुरक्षा पर भरपूर ध्यान देने की बात कही गई है.सुरक्षा तो अन्तराष्ट्रीय स्तर की देने की बात की गई है.अगले पाँच सालों में सभी लेवल क्रोसिंग हटाने का वायदा किया गया है.सुरक्षा मानकों पर खरे उतरने के लिए अत्याधुनिक तकनीक अपनाने पर जोर दिया गया है.
रेलवे सुरक्षा और विकास के लिए संवैधानिक संस्थान के गठन का प्रारूप बताया गया है. काकोदकर और सैम पित्रोदा की कमिटी के सुझाव के अनुसार रेलवे द्वारा स्वायत्त रेल सुरक्षा अधिकरण ,रेलवे रिसर्च डेवलपमेंट कौंसिल और रेल रोड सेपरेशन कारपोरेशन की स्थापना करने का प्रस्ताव है.
पहली बार रेल बजट के महत्वपूर्ण बातों में यह रहा कि किसी रेल मंत्री ने उत्तर-पूर्व भारत में रेलवे के विकास के मुद्दे को घम्भीरता से संसद का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया.इन क्षेत्रों में रेलवे का विकास पिछले ६४ वर्षों से रूका सा है.त्रिपुरा में तो ट्रेन कि पटरी तक नहीं है.
रेल के आधुनिकीकरण के लिए 5.6 लाख करोड़ रूपये की आवश्यकता है.इसके लिए रेल भाडा में जो बढोतरी हुई है उससे तो रेलवे का पर्याप्त विकास नहीं हो पायेगा बल्कि अन्य क्षेत्र की तरह राष्ट्रीय रेलवे निवेश नीति अपनाने का विचार दिया गया है.यह बिलकुल भविष्यदर्शी व स्वागतयोग्य कदम है.
इसके साथ हीं रेलवे बोर्ड में दो सदस्यों की संख्या में इजाफा किया गया है,पहला है मार्केटिंग तो दूसरा सुरक्षा से जुड़े सदस्य ."जान है तो जहाँ है"-रेल मंत्री के इस कथन से इनके द्वारा उठाये गए कदम की पुष्टि होती है.
upa 2 के घटक तृणमूल जो पोपुलस राजनीती के लिए जानी जाती है वे रेल बजट का विरोध कर रहें हैं जबकि रेलमंत्री खुद तृणमूल कोटे से मंत्री हैं.अभी चाहे जो भी upa २ में नूराकुश्ती हो रही हो किन्तु रेलमंत्री का विजन काफी उत्साहजनक है.इन सरे सुधार मुद्दों पर बारीकी से नजर रखने के लिए मॉनिटरिंग कमिटी बनाने की आवश्यकता होगी.कुलमिलाकर, राजनीतिक बातों को छोड़ कर गुणवत्तायुक्त तथा कुशल प्रबंधन युक्त बजट प्रतीत हो रहा है...शायद यह रेलवे के इतिहास में फर्स्ट जेनरेशन रिफोर्म साबित हो....
तमाम राजनीति के बावजूद ८१ वें बजट में रेल के भविष्य की खूबसूरत व अवश्यम्भावी रूपरेखा प्रस्तुत की गई है.बजट में रेलवे के आधुनिकीकरण और सुरक्षा पर भरपूर ध्यान देने की बात कही गई है.सुरक्षा तो अन्तराष्ट्रीय स्तर की देने की बात की गई है.अगले पाँच सालों में सभी लेवल क्रोसिंग हटाने का वायदा किया गया है.सुरक्षा मानकों पर खरे उतरने के लिए अत्याधुनिक तकनीक अपनाने पर जोर दिया गया है.
रेलवे सुरक्षा और विकास के लिए संवैधानिक संस्थान के गठन का प्रारूप बताया गया है. काकोदकर और सैम पित्रोदा की कमिटी के सुझाव के अनुसार रेलवे द्वारा स्वायत्त रेल सुरक्षा अधिकरण ,रेलवे रिसर्च डेवलपमेंट कौंसिल और रेल रोड सेपरेशन कारपोरेशन की स्थापना करने का प्रस्ताव है.
पहली बार रेल बजट के महत्वपूर्ण बातों में यह रहा कि किसी रेल मंत्री ने उत्तर-पूर्व भारत में रेलवे के विकास के मुद्दे को घम्भीरता से संसद का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया.इन क्षेत्रों में रेलवे का विकास पिछले ६४ वर्षों से रूका सा है.त्रिपुरा में तो ट्रेन कि पटरी तक नहीं है.
रेल के आधुनिकीकरण के लिए 5.6 लाख करोड़ रूपये की आवश्यकता है.इसके लिए रेल भाडा में जो बढोतरी हुई है उससे तो रेलवे का पर्याप्त विकास नहीं हो पायेगा बल्कि अन्य क्षेत्र की तरह राष्ट्रीय रेलवे निवेश नीति अपनाने का विचार दिया गया है.यह बिलकुल भविष्यदर्शी व स्वागतयोग्य कदम है.
इसके साथ हीं रेलवे बोर्ड में दो सदस्यों की संख्या में इजाफा किया गया है,पहला है मार्केटिंग तो दूसरा सुरक्षा से जुड़े सदस्य ."जान है तो जहाँ है"-रेल मंत्री के इस कथन से इनके द्वारा उठाये गए कदम की पुष्टि होती है.
upa 2 के घटक तृणमूल जो पोपुलस राजनीती के लिए जानी जाती है वे रेल बजट का विरोध कर रहें हैं जबकि रेलमंत्री खुद तृणमूल कोटे से मंत्री हैं.अभी चाहे जो भी upa २ में नूराकुश्ती हो रही हो किन्तु रेलमंत्री का विजन काफी उत्साहजनक है.इन सरे सुधार मुद्दों पर बारीकी से नजर रखने के लिए मॉनिटरिंग कमिटी बनाने की आवश्यकता होगी.कुलमिलाकर, राजनीतिक बातों को छोड़ कर गुणवत्तायुक्त तथा कुशल प्रबंधन युक्त बजट प्रतीत हो रहा है...शायद यह रेलवे के इतिहास में फर्स्ट जेनरेशन रिफोर्म साबित हो....
अपना नेहरु प्लेस
दक्षिण दिल्ली का नेहरु प्लेस कम्प्यूटर और आईटी के अन्य उत्पादओं को एशिया का सबसे बङा और अनोखा बाजार है। सही मायने में कहें तो नेहरु प्लेस कम्प्यूटर की मंडी है,जहाँ कम्प्यूटर और संबंधित उपकरणों के दाम तय होते और पल-पल बदलते भी रहते है।इस बाजार में जुङी लगभग हर नई-पुरानी और असली-नकली चीजें मिलती हैं।यहाँ एचपी,लेनेवो,सोनी,काँम्पेक जैसी कंपनियों के शोरुम है और साथ ही कम्प्यूटर की अनाधिकृत दूकानें भी हैं।नेहरु प्लेस में आईटी से जुङे करीब 2,000 कारोबारी हैं जो मुख्य बाजार के भू-तल और प्रथम तल की दुकानों में फैले हैं।इस बाजार में पार्किंग,खान-पान और सभी कारोबारों को मिलाकर करीब पचास हजार लोगों को रोजगार मिलता है।एक अनुमान के मुताबिक नेहरु प्लेस में सालाना करीब 3,000करोङ रुपये का कारोबार होता है।वहाँ पहली बार जाने वाले ग्राहकों के लिए पूरे बाजार की चाल को समझना आसान नहीं है।
पिछले नौ वर्षों से नेहरु प्लेस में माल खरीदने आ रहे सोनू कौल पहले आईटी से जुड़ी एक छोटी कंपनी में सेल्स का काम करते थे। रोज आते जाते नेहरु प्लेस में संपर्क बने और अब वह अपने साथी के साथ आईटी कंपनी गुड साँल्यूशन तना रहे है और उसकी मार्केटिंग खुद ही देखते है।सोनू की पढाई विज्ञान या कम्प्यूटर से जुङी किसी भी शाखा से जुङी नहीं है,लेकिन वह कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क ,रैम,मदर बोर्ड आदि के बारे में काफी अच्छी जानकारी रखते हैं।
आशु यूपी के गोरखपुर का रहने वाला है और 23 साल का है।आशु करीब सात साल पहले अपने मामाजी का पास नेहरु प्लेस के कम्प्यूटर के एक बङे डिस्ट्रीब्यूटर के गोदाम में मजदूरी करने आया था।रात को वहीं पटरी पर सोता था।फिर एक रात उसने कार्टरेज में स्याही भरते हुए कुछ लङकों को देखा और उन्हीं से काम भी सीखा।फिर उसने पटरी पर ही स्याही भरने का काम शुरु कर दिया जिसमें स्याही लाकर देने वाला आधा हिस्सा ले लेता था।अब दो साल से यहीं अपना काम कर रहा है।नेहरु प्लेस की ओसियान बिल्डिंग में दूसरे माले पर न्यू स्टार सिस्टम के गौरव गुप्ता से पता लगा कि कैसे दामों में उतार-चढाव होता है।गुप्ता ने एलएलबी की है,लेकिन पिछले आठ वर्षों से कम्प्यूटर हार्डवेयर का कारोबार कर रहे है।
उनका कहना है कि नेहरु प्लेस में एक अंदरुनी फोन की लाइन है, जिसे छोटी लाइन कहते हैं। इससे लगभग सभी स्थानीय कारोबारी जुड़े हुए हैं। अब अगर बाजार में किसी उपकरण की माँग आती है तो तुरंत ही सब तक खबर पहुँच जाती है। चूँकि हर माल सबसे पास नहीं होता है, तो इसके जरिए संपर्क करने में आसानी रहती है और कहीं से भी माल ला कर ग्राहक को दिया जाता है। हालांकि कई बार कुछ दुकानदार माल की कमी होने पर दाम बड़ा भी देते हें। गुप्ता जी का कहना है बाजार में करीब 50 से 60 फीसदी ग्राहक तो जान पहचान से ही आतें हैं, जो नेहरु प्लेस जैसे बाजार के लिए जरुरी भी है।
अभिभावकों की परेशानी बने नर्सरी के प्रवेश
डॉक्टर मोमिता को आजकल काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है ..और कारण है उनके बेटे का नर्सरी के एड़मिशन..और ये परेशानी सभी लोगों को झेलनी पड़ रही है जो अपने बच्चो का प्रवेश करने के इच्छुक है..दरअसल हर स्कूल का आज अपना क्राईटिरिया है और एड़मिशन में बच्चों की उम्र को लेके भी ये अपने मनमाने नियम बना रहे है..इसलिये पैरेन्टस को इसको लेके काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है..
डॉक्टर मोमिता का कहना है कि हर स्कूल में आज बच्चों के एडमिशन के अपने नियम हैं,कोई स्कूल 3 साल की उम्र में तो कोई 4 साल की उम्र में प्रवेश दे रहे हैं ..और इसी वजह से आगे चल के अन्य स्कूलों में प्रवेश के लिये पेरेन्टस को काफी दिक्कतो का सामना करना पड़ेगा.
एनसीआर के कई जाने माने स्कूल नर्सरी में बच्चों के 3 साल की उम्र मे ही प्रवेश दे रहे है तो वहीं दूसरी ओर दिल्ली के स्कूलों मे एड़मिशन 4 साल की उम्र में देते है जो आज पैरेन्टस को काफी सिरदर्दी दे रहा है..वही जाने माने स्कूल की प्राध्यापिका से बात करने पर उनका कहना था हर स्कूल के अपने नियम होते है..
अब सभी चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर सख्त फैसला ले..साथ ही पैरेन्टस के साक्षात्कार के मसले पर अभिभावकों का कहना था कि हर बच्चे को पढ़ने का हक होता है और उसे उसके मानसिक स्तर से प्रवेश मिलना चाहिये..और हर मा बाप का सपना होता है बच्चे को अच्छी शिक्षा देना और साक्षात्कार इसमें एक रुकावट है..
पुरानी दिल्ली की सैर
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है जो भी आया है उसने लूटा है.और भी ना जाने कितनी फिल्में,गाने और शायरी पुरानी दिल्ली पर बन चुके है.उंची ईमारते और मेट्रों की सुविधा होने के बावजूद भी पुरानी दिल्ली में आज भी कुछ अलग है जो इसको अन्य इलाकों से अलग करता है...यहां पहुचकर अलग ही अहसास होता है जिसे बयां कर पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है..
तो बताते है क्या खास है इस जगह की जो हर कोई इसकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाता..पुरानी दिल्ली आने के लिये चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरना होता है..चांदनी चौक का अपना अलग महत्व है और शादी की खरीददरी के लिये सबसे उपयुक्त स्थान है ..पुरानी दिल्ली में हर किस्म के बाजार उपलब्ध है जहां हर तरीके का सामान भी उपलब्ध है..
यहां की सबसे प्रसिद्ध गली है परांठे वाली गली.नाम से ही साफ तौर पर स्पष्ट हो जाता है कि यह गली परांठो के लिये जानी जाती है..कुछ दुकानदारो से हमने बात की..पण्ड़ित कन्हैया लाल दुर्गा प्रसाद दुकान जो कि इस गली के सबसे पुरानी दुकानों मे से है के मालिक ने बताया कि यहा सेलेब्रिटीज भी आती है और तकरीबन 40 प्रकार के परांठे यहां पर उपलब्ध हैं..साथ ही परठों का स्वाद लेती हुई महिला ने बताया कि वो शादी की खरीददारी के लिये यहां आयी हैं और इतनी खरीददारी के बाद परांठो को खाने का मज़ा ही कुछ और है..और परांठों का स्वाद काफी अच्छा है..
इसके बाद किनारी बाजार की बारी आती है जो शादी की खरीददारी के लिये जानी जाती है.बहुत कम मूल्य पर यहां पर खरीददारी का लुफ्त उठाया जा सकता है..
नई सड़क को छात्रो के लिये काफी उपयुक्त माना जाता है..और कम दामों पर यहां सेकेण्ड़ हेण्ड़ किताबे उपलब्ध हो जाती हैं...यहा पर किताबे लेने आयी एक छात्र ने बताया कि यहां पर बाजारो से तकरीबन 35 प्रतिशत कम मे पुस्तक मिली है और अगले साल पुस्तक को वापस कर देने पर 60 प्रतिशत तक पैसे वापस कर दिये जाते है..
चश्मों,चप्पलों और लकड़ी के सामानो के लिये बल्लीमारान उपयुक्त जगह है...दूसरी ओर क्लीनिकल सर्जरी, लाईटें,ईलेक्ट्रोनिक्स और ईलेक्ट्रिकल आईटम के लिये भागीरत पैलेस जाना सबसे उपयुक्त है यहा 50 प्रतिशत तक कम के सामान यहां आसानी से मिल जाते हैं..
पुरानी दिल्ली केवल खरीददारी के लिये ही नहीं बल्कि अपनी पुरानी पहचान को साथ में लिये हुए है,जहां सभी धर्मों के लोग सहिष्णुता के साथ रहते है.इसलिये परंपराओं का घाल मेल देखना हो और पुरी दिल्ली को ठीक से देखना हो तो ये जगह आपको जरुर अच्छी लगेगी..
जेएनयू में छात्रावासों में भोजन को लेकर समस्या
जेएनयू जो भारत में पहली सूची में आने वाले विश्वविद्यालय के लिये जाना जाता है वहां छात्रों को भोजन की समस्या से जूझना पड़ रहा है..यहां के मेस मे छात्रों को कच्ची रोटियां तक खानी पड़ रही है..और इसी तरह की परेशानियों है जो छात्रो को आय दिन सहनी पड़ रही है...भारत के दूर वर्ती क्षेत्र से आये छात्र रामेन्द्र सिंह जो पूर्वांचल होस्टल में रहते है कहते है मेस में खाना तो सस्ता तो है लेकिन खाना कच्चा ही परोसा जाता है साथ ही मेस के किचन में काफी गन्दगी रहती है जो बीमारियों को न्योता देती है....इसी हॉस्टल के अन्जनी सिंह कहते है कि खाना बाहर भी खाया जा सकता है लेकिन इसके लिये काफी दूर जाना पड़ता है और रोज रोज इतने पैसे खर्च भी नहीं किया जा सकते.यह केवल एक ही हॉस्टल की कहानी नहीं है सभी का यही हाल है.गंगा,झेलम,ताप्ती,,कावेरी,गोदावरी छात्रावासों में यही हाल है...कभी जेएनयू के छात्रावास अपनी उच्च सेवाओं के लिये जाने जाते थे लेकिन आज की स्थिति कुछ और ही बयां करती है.
Wednesday, 14 March 2012
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